Anju Dixit

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अब नही डराती बदली सावन की

कितनी जोर से उठते यह बादल, लगता सारा शहर डुबो देंगे पर उतनी ही तेजी से चलती हवाओं के साथ जाकर बरस जाते न जाने कहाँ जाकर, और जो मन का मयूर नाच उठता इनके आने से उदास हो जाता।
अपने यहाँ बारिश न जाने कब होगी  अपनी ही धुन में कहे जा रही थी सोनल
हो जाएगी बारिश आप इतने क्यों दुखी हो रहे हो इस बारिश के चक्कर में, आपके खूबसूरत चेहरे पर चिंता की लकीरें पड़ जाएगी इतना मत सोचा करो।
और मैं बिल्कुल नही चाहता मेरी नयी नवेली दुल्हन का खूब सूरत चन्दा से चेहरे में कोई दाग लगे।
  शरारत से कहते हुए रचित ने सोनल का प्यारा सा चेहरा अपने हाथों में ले लिया।
सोनल एकदम से घबरा गयी, आप -आप कब आए ऑफिस से।
रचित--जब आप बादलों को डांट रहीं थी।
सोनल शरमा कर रह गयी।
रचित- सोनल क्या सच मे तुम्हें इतना गुस्सा आ रहा इन बादलों पर।
सोनल-- हाँ, नही तो ।
रचित- यह क्या जबाब हुआ ,हाँ भी औऱ न भी।
सोनल और रचित की शादी को अभी 2 महीने ही हुए थे।
दोनों एक दूसरे को समझ भी नही पाए अभी।
रचित जितना बोलने बाला लड़का सोनल उतनी ही शर्मीली, और गांव की एक पड़ी लिखी सादा सी लड़की।
रचित एकदम विपरीत हमेशा से शहर में पला बड़ा , mca  , किए हुए स्टेंडर्ड लेविल का बन्दा।
पता नही  क्यों एक से सके मॉर्डन लड़की जो  पढ़ाई में स्टेटर्स में उसके मुताविक थीं, उन सबको छोड़कर माँ के  द्वारा दिखाई गई सोनल की साधारण से फोटू भा गयी, और हाँ कर दी।
अक्सर लड़कों के साथ एक लोचा होता उन्हें तड़क भड़क वाली हाईप्रोफाइल  लड़कियों  से दोस्ती करना तो अच्छा।लगता पर जहां बात जीवनसाथी का चुनाव करने की आती तो वह एक सादगी  भरी लड़की ही पसन्द करते ऐसा ही रचित भी था।
उसको भा गयी थी सोनल की सादगी।और इस कदर भाई की सारे  लड़कियों के फोटू उसके सामने रद्दी लग रहे थे।
वैसे सोनल थी भी एक खूबसूरत लड़की , तीखे नयन नक्स   लम्बे काले बाल, सबसे गजब थी उसकीं आँखे जो अक्सर शर्म से झुक जातीं ,और वो झुकने की अदा सामने
वाले का काम तमाम कर देती।
वही हुआ रचित का जब सोनल को पहलीबार देखा।
दिल दिमाग दोनों हार गया।

रचित-- अब शरमाना छोड़ो चलो नीचे बादलों को कल डांट लेना।
सोनल उससे हाथ छुड़ाती बच्चों की तरह सीढ़ियां उतरती भाग गयी।
और रचित उसकी इस  हरकत पर एकबार फिर दिल हार  गया।

घर मे बस चार लोग थे रचित के मम्मी पापा रचित और छोटी बहन, सोनल ने दो महीने में ही सबका दिल जीत लिया था।
  पढ़ाई में बस बीए ही किया था उसने वो भी बस घरपर पढ़कर कॉलिज बस एक्जाम के टाइम ही जाना होता था।
ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी सोनल को रचित के जाने के ऑफिस जाने के बाद अकेलापन खाने को दौड़ता।
सास पूजापाठ या आसपास सत्संग में अधिक समय बिताती , ननद हॉस्टल में दूसरे शहर मे रहकर पढ़ाई कर रही थी।
रचित अच्छे से समझता था कि सोनल सारा दिन ऐसे उसकी राह देखती जैसे चातक बादलों को निहारता है।
और रचित को उसके चेहरे पर अपने आने की खुशी स्पष्ट दिखाई देती।
बस यही तो चाहिए था  इसीलिए उसने चुना उसने सोनल को , जो प्यार सानिध्य उसे सोनल के साथ मिलता कोई हाईप्रोफाइल वाली लड़की से नही मिल पाता।
कभी कभी बराबरी का मामला होने से प्यार के साथ टकराव आ जाता,
खैर पर रचित को पूरी तरह भा गयी सोनल दीवानों सा प्यार करता उसे ।
वह चाहता उसको पलकों में बिठाकर रखे एक पल भी आँखों से ओझल न होने दे ,पर ऑफिस भी जरूरी था।
शादी को दो महीने हो गए वह सोनल को कहीं घुमाने भी न ले जा पाया था।
और सोनल ने कभी कहा भी नहीं।
आज सारा काम निपटाकर जब सोनल  कमरे में आई तो
रचित सो चुका था।
सोनल को बहुत बुरा लगा, सारे दिन में तो अब मिले वो भी सो गए, कहते हुए उसकी पलकें भर आयीं और वह सिसक उठी , रचित ने जब सिसकी की आवाज सुनी तो उसकी आँख खुल गयी , उसने देखा बैड से दूर सोफे पर बैठी सोनल रो रही थी।
रचित झट से कम्बल  हटाकर उसके पास जा पहुंचा ,रचित को इस तरह अपने सामने देख सोनल हड़बड़ा गयी और बहुत जल्दी अपने आसूं साफ कर लिए।
रचित--क्या हुआ इतनी ठंडी में रात के 11 बजे बैड पर सोने की जगह यहाँ बैठकर यह क्या हो रहा।
सोनल एकदम डर गई  क्योंकि रचित की आवाज मे कुछ डाँटने जैसा महसूस हुआ उसे।
सहमी सी सोनल को देखकर रचित को शरारत सूझी,
रचित--अरे मै कुछ पूछ रहा हूँ बोलो न।
सोनल बिना कुछ बताए बड़ी डर कर बोली sorry वो गलती हो गयी  आपको मेरी बजह से जाग गए।आइंदा से
नही होगी।
सोनल की इस मासूमियत को देख रचित का दिल भर आया उसने बैड पर बैठी सोनल को अपनी वाहों में भर लिया। फिर सोनल से बड़े प्यार से पूछा क्यों रो रहीं थी, क्या कहीं दर्द है या कोई और बजह बताओ मुझे।
रचित की वाहों में मासूम बच्ची सी छुपी सोनम एकदम  सिसक उठी और उसने जो कहा वो सुनकर रचित का हंसी से बुरा हाल हो गया।
सोनल रोते हुए--आप  सुबह 8 बजे ऑफिस चले जाते।
रचित -- हाँ,
सोनल--फिर शाम को 6 बजे आते हो।
रचित -- हाँ,
सोनल-- फिर  मम्मी पापा से बात करते खाना खाते  फिर जब तक  मैं आती कहते कहते सोनल की आवाज आँखे दोनों भर आयीं वह चुप हो गयी।
रचित-- आगे क्या बोलो भी बीबी।
सोनम-- फिर जब तक मैं काम निपटाकर आती आप सो जाते ,
रचित-- तो,
सोनल- थोड़ा झुंझलाहट से उसकी वाहों से निकलते हुए ,
तो यह  मै सारा दिन आपका इंतजार करती पागलों की तरह आप एकबार भी  मुझसे बात करने की कोशिश नही करते, और कहते कहते रुक गयी।
रचित-- शरारत से और क्या।
सोनल चिढ़ती हुई और 2 दिन से जब तक में आती मुझसे पहले ही सो जाते तो मैं अकेली रोने के अलावा क्या कर सकती हूं।
सोनल की मासूमियत पर रचित पूरे पाँच मिनट तक हँसता रहा , और सोनल उसे गुस्से से घूर रही थी,
फिर उसने सोनल का हाथ बड़े प्यार से थामा सोनल ने गुस्से से झटक दिया, मुझे नही करनी आपसे बात, आप को मुझे नजरअंदाज करने कर अलावा कुछ नही आता।
अब ऐसे में मैं रोऊँ न तो क्या करूँ, मुझे प्लीज मेरी मम्मी के घर भेज दो।
रचित- वैसे जी यह आप अपने इतने वेशकीमती आसुओं को बहाने के अलावा एक काम और भी कर सकती हैं  सोनम जी, वो यह जब मैं सो जाता तो आपका हक है आपका पति हूँ मैं , पूरे अधिकार सहित उठा  सकती मुझे, और डांट भी सकती जैसे आज शाम बादलों को न बरसने पर डांट रहीं थीं, अपने अधिकारों का प्रयोग करना सीखो बीबी, कहकर रचित ने सोनम को गले से लगा लिया।
तभी बादलों की तेज गड़गड़ाहट ने उसे ख्यालों की दुनिया से बाहर ला दिया।
पास में बैठा 5 साल का बेटा एकदम मुस्कुरा उठा मम्मा आप डर गयीं बादलों की आवाज से।

सोनल ने एक दर्द भरी आह भरी उसके मुंह से निकल पड़ा अब डर नही लगता बेटे,
क्यों ?मम्मा,
इसलिए क्योंकि अब कोई नही रहा मेरी मासूमियत को समझने वाला , अपनी वाहों में छुपाने वाला।
रजत कुछ भी नही समझ पा रहा था उसकी बातों का मतलब वह बाहर दादी के पास चला गया।
सोनम अपनी ही धुन में कहती चली गयी याद आता गया गुजरा हुआ कल बरसने लगीं आँखे बादलो के साथ, चीखने लगा दिल बिजली की भाँति ,अफसोस कोई न था आज यह कहने वाला रोने के अलावा एक काम और कर सकती हो सोनल अपने अधिकार का प्रयोग।
आज कोई भी न था इन आसुंओ को अनमोल कहने बाला।
उसे याद आने लगा सब ।
सुबह चाय के समय रचित ने माँ से कह दिया।
माँ  बाबूजी ,अगर आपकी इजाजत हो तो मैं सोनम को एम का फार्म डलबा दूँ सारा दिन घर मे बोर होती रहती है।

ठीक है बेटा हमें कोई एतराज नहीं।
और शाम को ऑफिस से आते समय रचित फार्म ले आया और  रचित जानता था सोनम को हिंदी साहित्य से बहुत रुचि है ,सो हिंदी से फार्म भरबा दिया वो भी रेगुलर।
सोनम ने मना किया-- मैं क्लास कैसे अटेंड करूँगी मै तो कभी कॉलिज नही गयी गाँव मे भी फिर इतने बड़े शहर में मुझसे न जाया जाएगा।
रचित-- मैं  हूँ न तुम बस पढ़ाई पर ध्यान दो और थोड़ा बहुत नए जमाने के तौर तरीके सीखो ।
अब सोनम कॉलिज जाने लगी , थोड़ा बाहर निकलना सीख गयी  उसने अच्छे नम्बरों से एम पास किया फिर रचित ने पीजीटी  में उसका फार्म डलबा दिया और कोचिंग भी लगवा दी, जबकि सोनल मना करती पर रचित उसे समझाता अपने पैरों पर खड़े होने में कोई बुराई नहीं, पूरा पूरा सहयोग करता ।
अक्सर सोनम देर तक पढ़ती तो रचित उसके लिए कॉफी बनाकर ले आता ,सोनम को रचित में पति कम दोस्त ज्यादा नजर आता।
सोनम की मेहनत और रचित का सहयोग रंग लाया सोनम  एक्जाम पास कर लिया और आज वो इंटरव्यू को जा रही थी माँ, बाबू जी के पैर छूने के बाद वो रचित के पैरों में झुकी रचित ने उसे गले लगा लिया तुम्हारी जगह यहाँ है बीबी वहाँ नही।
इंटरव्यू के बाद सोनम का सिलेक्शन दूर शहर में हिंदी लेचरर के पद पर हो गया सभी बहुत खुश थे सिवाय सोनम के।
रचित-- आज तुम उदास क्यों हो इतनी खुशी का दिन है,
तुम अपने पैरों पर खड़ी हो गयीं बीबी।
सोनम-- मुझे कहीं नही जाना आपसे दूर, नही होना ऐसे पैरों पर खड़ा जो मुझसे मेरी जिंदगी का पता ही छीन लें।
रचित-- पागल हो क्या अरे लोग चाहते हैं उन्हें यह दब मिले तुम्हे मिल गया तो ठुकरा रही।
सोनम-- मुझे ऐसी कोई भी खुशी नही चाहिए जो तुमसे अलग कर दे समझे आप मुझसे इस बारे मे कुछ न कहना सोनम ने आँखे दिखाई।
रचित-- अरे रे एक बार फिर से कहना ऐसे ही, आज लग रही मेरी बीबी एक परफेक्ट बीबी।
पर सोनम मेरी खुशी के लिए प्लीज न मत करना, मेरी अच्छी बीबी  ।
और रचित की जिद और प्यार के आगे हार गयी सोनम और  5 दिन बाद रचित उसे अपने शहर क्या जिले से 400 किलोमीटर दूर माँ के साथ पहला दिन कॉलिज ज्वाइन कराकर खुद सोनम को समझाकर भीगीं पलके लेकर लौट आया।
हर शनिवार की रात पहुँच जाता सोनम के पास।
एकदिन माँ का फोन आया सोनम कि तबियत खराब है, सुबह ही निकल पड़ा बेचैन से आज 400 किलोमीटर का सफर बहुत लम्बा लगा उसे।
पर माँ बहुत खुश थी घर में पहुंचते ही बेटा मुबारक हो तो बाप बनने वाला है।
सुनते ही रचित झट से शर्मायी सी सोनम को गले लगा लिया धन्यवाद बीबी मेरा प्रमोशन करने के लिए।
9 महीने बाद सोनम ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया सारा घर खुशियों से झूम उठा।
सिफारिशोंके बल पर 2 साल बाद  सोनम का ट्रांसफर अपने शहर में हो गया ।
आज सोनम एक जागरूक महिला बन गयी थी, जो समाज के हर पहलू से बाकिफ थी ।
पर आज भी साबन की बारिश उसे बहुत भाती और उससे भी ज्यादा भाता बिजली से डरकर रचित की वाहों में मासूमियत से सिमट जाना।
रचित अक्सर उसकी इस आदत पर कहता अब भी क्यो डरती हो तुम।
सोनम प्यार से कहती क्योंकि आप मुझे छुपा लेते अपनी वाहों में तो जो सुख मुझे मिलता उस पल उस सुख को पाने के लिए मैं सारी उम्र डरने को तैयार हूं।
और एकदिन रचित के फोन से कॉल आयी सुनते ही सोनम कॉलिज से सीधे हॉस्पिटल पहुँच गयी रचित आईसीयू में एडमिट था ।
डॉक्टर ने जो बताया सुनकर सोनम दंग रह गयी आज समझ आया उसे रचित क्यों उसे पढ़ा लिखाकर उसके पैरों पर खड़ा किया, क्यों  बनाया उसे समाज मे उठने बैठने, हर अवस्था से लड़ने के काबिल।
डॉक्टर ने कहा आप मिल लो रचित को होश आया गया,
सोनल रचित के पास जाकर बिफर पड़ी क्यों छुपाया अपने मुझसे इतना बड़ा सच क्यों।
रचित ने काँपते हाथों से उसके आसुओं को पोछा फिर धीरे धीरे कहना शुरू किया सोनम-शादी के 4 महीने बाद अचानक सिर दर्द हुआ फिर डॉक्टर ने सीडीस्केन करके बताया उसे दिमाग का कैंसर है और उसके पास जिंदगी के नाम पर कुछ ही साल बचे हैं।
फिर मैं अक्सर तुम्हारी मासूमियत को देखकर डर जाता  कि मेरे न रहने के बाद तुम्हारा क्या होगा ।
फिर उस रात तुम्हारे एक सवाल ने मुझे आइडिया दिया तुम्हे तुम्हारे पैरों पर खड़ा करने का और तुमने मेरे प्यार के लिए सब किया और आज मुझे बहुत सन्तुष्टि हैं कि मेरी
बीबी आज जमाने की हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला कर सकती है, अगर मेरी मैं तुमको पहले बता देता सब तो
तुम वक्त से पहले ही टूट जाती और मैं मौत से पहले मर जाता।
यकीन मानों इन 10 सालों में तुम्हारे साथ हर पल भरपूर जी लिया मैने अब जिंदगी से कोई शिकायत नही मुझे, मौत आ भी जाए तो गम नहीं।
सोनम चीख पड़ी एकदम चुप हो जाओ आप एक शब्द भी न कहना आगे ,सोनम ने रचित को गले लगा लिया औऱ बिलख उठी।
रचित खिलखिला उठा बस यही बीबी तो चाहिए मुझे एकदम रौबदार कड़क पर आज भी उतनी ही मासूम हो तुम,
सोनम अब कभी साबन में बिजली कड़के तो तुम डरना नहीं क्योकि शायद अब आने वाले किसी सावन में मैं तुम्हारे साथ न होऊँगा तुम्हें अपनी वाहों में छुपाने को कहकर रचित ने सोनम के गाल पर प्यार भरा वोसा लिया और चला गया उसे भरे साबन में अकेला छोड़कर।
तब से आज 15 साल हो गए भूली तो वो कभी न रचित को न आखिरी सांस तक भूल पाएगी।
पर जब भी सावन आता बिजली चमकती वो अब नही डरती आज जब बादल ले गड़गड़ाहट से मन को भय हुआ तो उसके 12 साल के बेटे रजत ने उसका हाथ थाम लिया यह कहकर मासूमियत से माँ आप डरना नही मैं हूँ न, सोनम ने रजत को अपने गले लगा किया यह कहकर न मेरे लाला अब न डरती तेरी माँ  जीवन भर को शसक्त बना गए मुझे रचित बाबू कहकर दो आसूं उसके गालों पर ढरक गए।
दूर आसमान में रचित नजर आ गया यह कहता हुआ तुम
एक सशक्त महिला हो कभी कमजोर न पड़ना ।
दूर होकर भी तुम्हारे साथ हूँ मैं और आकाश को अपलक निहारती रही सोनम।


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4 Comments

Sana khan

27-Aug-2021 12:10 PM

बहूत अच्छे

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Sana khan

27-Aug-2021 12:10 PM

👍

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Miss Lipsa

27-Aug-2021 04:26 AM

Best kahani

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